अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए
आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए
मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए
मेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाए
जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे
मेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाए
ऐसे माहौल में,‘नीरज’ को बुलाया जाए
2 comments:
Behad achha likha hai.." kya mar gaye sab insaan?
Bach gaye sirf hindu ya musalmaan?"
Meree kuchh kavitayen June/July 2007 ke archivesme hain...zaroor padhen..mujhe khushee milegee..
snehsahit
Shama
aur ye word verification pls hata den!
thank you so much for posting these
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