Monday, October 6, 2008

किस कर में यह वीणा धर दूँ? - Harivansh Rai Bachchan

देवों ने था जिसे बनाया,
देवों ने था जिसे बजाया,
मानव के हाथों में कैसे इसको आज समर्पित कर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?

इसने स्वर्ग रिझाना सीखा,
स्वर्गिक तान सुनाना सीखा,
जगती को खुश करनेवाले स्वर से कैसे इसको भर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?

क्यों बाकी अभिलाषा मन में,
झंकृत हो यह फिर जीवन में?
क्यों न हृदय निर्मम हो कहता अंगारे अब धर इस पर दूँ?
किस कर में यह वीणा धर दूँ?

Other Information

Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।बधाई।

एस. बी. सिंह said...

man ko madhu se bhar diyaa. shukriyaa

Anonymous said...

PLEASE SEND ME DOHE OF RAS KHAN , MIRA , SUR DAS .IT"S NESSEARY. PLEASE MY E-MAIL ID IS mrinalini.das1988@rediffmail.com

Anonymous said...

PLEASE SEND ME DOHE OF RAS KHAN , MIRA , SUR DAS .IT"S NESSEARY. PLEASE MY E-MAIL ID IS mrinalini.das1988@rediffmail.com